देश के युवा व समाज को विकल्प देने वाला संत, कानुन भंवर जाल मे उलझा कर बिना जमानत और बिना पेरोल के 7 सालों से हैं जेल में ! आखिर साजिश कब तक?

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 August 30, 2020 
Nayan lavawansh

आप आशाराम बापू को जो भी समझो, आप की जैसी सोच है वैसा सोचों, जिसने जो सुना, उसने वो समझा, लेकिन हमारी समाज को जो बापु ने दिया उसको उनका कट्टर विरोधी को भी मानना पडेगा।
वास्तविक मे आशाराम बापू क्या है, कितनों ने जानने की कोशिश की। मुझे लगता है जो भी आज आशाराम बापू का नाम सुनते ही भौंहे सुकोड़ लेता है, उनके खिलाफ साजिश के तहत एक जो बनावटी एक लडकी को खडा कर बनावटी बाते प्रस्तुत की गई,वही सुना हैं, इसके अलावा कुछ नहीं है। बहरहाल हम बात कर रहे है कि आशाराम बापू के बारे में जानने की कोशिश किसने की और कितनी की।
आशाराम बापू को 31 अगस्त 2013 को मप्र इंदौर आश्रम मे गिरफ्तारी दी। 31 अगस्त 2020 को 7 साल हो जाएंगे उन्हे गिरफ्तार हुए। इससे पहले भी आशाराम बापू पर कई सारे मामले दर्ज थे, जिनमें से उन्हे कई मामलों में क्लिन चिट कोर्ट ने दे दी थी। आशाराम बापू पर उनके छिंदवाड़ा गुरूकुल में पढ़ने वाली छात्रा ने छेड़छाड़ का आरोप लगाया था, जिसके बाद उनके खिलाफ दिल्ली में मामला दर्ज किया गया। वो भी जीरो एफआईआर। मामला आगे बढ़ा और केस में रेप से संबंधित धाराएं जोड़ी जाने लगी और लड़की का मेडिकल कराया गया, जिसमें साफ तौर पर लिखा गया था कि उसके शरीर पर एक खरोच तक नहीं है, फिर भी रेप का केस दर्ज किया गया, किसके दबाव में कुछ पता नहीं। आशाराम बापू पर केस दर्ज हो गया, अब मामले की जांच राजस्थान में होने लगी। उसके बाद उनके बेटे नारायाण साई पर भागने का आरोप लगा , इस दौरान मानों उनके ऊपर रेप केस की बारिश हो रही थी, जहां देखों वहां से 2 महिलाएं आती थी , जिससे आम जनमानस में आशाराम बापू के खिलाफ एक माहौल बनाया जा सके। इसके बाद इस मामले में महिला आयोग भी आ गया, जो महिलाओं का ठेकेदार है। लगभग दो साल तक सुनवाई हुई और आशाराम बापू को आजीवन कारावास की सजा हुई।
आज 85 साल के वृद्ध को रेप केस में जेल के अंदर रखा गया है, उन्हे भारतीय संविधान की मूलभूत अधिकारों से भी वचिंत किया गया, उन्हे एक बार भी जमानत या पेरोल नहीं दी गई ,यहाँ तक कोरोना महामारी मे संगीन कैदियों को केंद्र सरकार आदेश पर रिहा किये गये परंतु बापु के लिए मानो देश मे दुसरा ही कानुन चल रहा है इस पूरे 7 साल में। ये कैसा न्याय है, जहां आतंकियों के लिए रात को भी देश का सर्वोच्च न्यायालय खुल जाता है, वहां लाखों करोड़ो लोगों के आस्था के प्रतीक को एक बार भी जमानत तक नहीं दी जाती। ये कैसी मानवता है, कहां गए मानवाधिकार वाले, इन मानवाधिकार वालों को सिर्फ आतंकियों और जिहादियों का मानवाधिकार दिखाई देता है, बापु के मानवाधिकारों से इन्हे क्या लेना-देना। इसके अलावा केरल के पोप को नन के साथ बलात्कार करने के जुर्म में भी उसे जमानत दी गई और वो बाहर खुले में घूम रहा है, और पीड़ित ननों को जान से मारने की धमकी दे रहा है। उस पर न्यायालय चुप है क्यों ? क्या उसका अपराध नहीं है, क्या आशाराम बापू को हिंदू संत होने की सजा मिल रही है, आशाराम बापू पर तो आरोप सिद्ध भी नहीं हो पाए, माननीय न्यायालय के समक्ष कानुनी भंवर जाल विरोधीयो ने ऐसा खेल खेला कि आज देश विदेश मे बापु ने समाज को क्या सभी जानने के बावजूद पता नही न जाने किसके दबाव में आकर ये फैसला सुनाया। जो लोग कहेंगे कि कोर्ट साक्ष्य देखता है, तो उस पोप के मामले में क्या साक्ष्य नहीं मिले, जिसे जमानत दे दी गई।
हिंदू साधु संतो पर लगने वाले आरोप कितने सही है ?
हमारे शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती पर हत्या का आरोप लगा, उन्हे दिपावली के दिया जलाने के समय पुलिस गिरफ्तार करके ले गई और उन्हे वर्षों जेल में रखा, यातनाएं दी और कुछ साल बाद कोर्ट ने उन्हे निर्दोष साबित किया, उसी तरह साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को पुलिस ने बम धमाके में आरोपी ठहराया और हर तरह की यातनाएं दी और कुछ सालों बाद कोर्ट ने उन्हे भी निर्दोष ठहराया इसके अलावा हमारे कई साधु संत है, जिन पर चारित्रिक दोष लगाकर उनके छवि को धूमिल किया गया है और यह क्रिया आज भी जारी है। जिसका उदाहरण आज आशाराम बापू के रूप में हमारे सामने है।
निशाने पर आशाराम बापू ही क्यों ?
एक बड़ा सवाल उठता है कि उस समय कि सरकारों के निशाने पर हमेशा आशाराम बापू ही क्यों रहते थे, जैसा कि सबको पता है कि आशाराम बापू ईसाई मिशनरियों के सबसे कट्टर विरोधी थे, इन्होने गुजरात और मध्यप्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़, झारखंड, यूपी सहित उत्तर भारत के कई प्रदेशों में ईसाई मिशनरियों के खिलाफ खुली जंग छेड़ रखी थी, जिससे ईसाई मिशनरियां बौराई हुई थी, वो अपने मनसूबों में कामयाब नहीं हो पा रही थी, ईसाई मिशनरियों को अपने मनसूबें में कामयाब होने के लिए सत्ता में बैठी तात्कालिक सरकार उन्हे मदद करती थी, क्योंकि ये भी बात किसी से छिपी नहीं है । कई तरह के आरोप लगाने के बाद भी जब ये षड्यंत्रकारी ताकते सफल न हुई तो उनके चरित्र पर ही दोष मढ़ दिया। जिसका खामियाजा आज सिर्फ आशाराम बापू ही नहीं पूरा देश भुगत रहा है।
अब मै उस बात की ओर आपका ध्यान ले जाना चाहूंगा जो मैने सबसे उपर लिखा है, समाज को विकल्प देने वाला आज जेल में है, ऐसा इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि हमारे देश में पिछले एक-दो दशक से पाश्चात्य कल्चर बड़े ही तेजी के साथ अपने पांव पसार रहा है। जिसका कुछ राष्ट्र वादी संगठन अपने सामर्थ्य भर विरोध कर रहे है और लोगों को जागरूक भी कर रहे है, लेकिन हमारे समाज में सिर्फ इन घटनाओं का विरोध करने से लोग उन्हे ही दोषी मान लेते है, जो उन्हे जागरूक कर रहा होता है, जैसा कि सब जानते है, विश्व हिंदू परिषद और बजरंगदल जैसे हिंदू संगठन के लोग लव जिहाद, वेलेंटाइन डे, क्रिसमस डे और अन्य डे का खुलकर विरोध करते है, लेकिन हॉलीवुड व टीवी सीरियल व मोबाइल के माध्यम समाज के युवा वर्ग नशा फेशन व पाश्चात्यीकरण से प्रभावित कर बर्बाद कर रहे है,जबकि इससे होने वाली हानि सबको पता है फिर भी अपने आप को सेक्यूलर दिखाने के लिए ऐसा नाटक करते है। लेकिन आशाराम बापू ईसाई मिशनरियों द्वारा फैलाए जा रहे पाश्चात्य कल्चर को रोकने के लिए सबसे आगे आते है और सिर्फ विरोध ही नहीं करते बल्कि हमारे हिंदू समाज को इस समस्या का समाधान करते हुए एक विकल्प देते है।
उनसे में कुछ महत्वपूर्ण बातों की मैं यहां चर्चा करना चाहूंगा।
1- आशाराम बापू ने सबसे पहले ईसाई मिशनरियों का विरोध किया और उनके द्वारा धर्मांतरित किए गए आदिवासी बंधुओं को फिर से सनातन में वापसी कराई और उनके कल्याण के लिए कई सामाजिक कार्यक्रम चलाए, जिससे ईसाई मिशनरियों की दुकाने बंद होने लगी।
2- आशाराम बापू ने क्रिसमस डे के दिन हिंदूओं को धर्मांतरित होने से बचाने के लिए उस दिन तुलसी पूजन दिवस एक नए कार्यक्रम की शुरुआत की ।
3-आशाराम बापू ने वेलेंटाइन डे का खुलकर विरोध किया और उसके ऊपर रोक लगाने के लिए लोगों में जागरूकता कार्यक्रम किया, इसके अलावा उन्होने हिंदू समाज और भारतीयों को विकल्प के रूप में मातृ-पितृ पूजन दिवस की शुरूआत की, जिससे आने वाली भावी पीढ़ी को अपने परंपरा और संस्कृति से जोड़े रखा जा सके।
4- इसके अलावा उन्होने 25 दिसंबर से 1 जनवरी तक होने वाले अपराधों और व्यभिचारों पर रोक लगाने के लिए हिंदू समाज को जागरूक किया और ईसाई नववर्ष मनाने से होने वाली हानियों को लोगों को बताया। इसके के विकल्प के रूप में उन्होने विश्वगुरू भारत अभियान चलाया।
इन सबके अलावा आशाराम बापू के आश्रम द्वारा आदिवासी इलाकों में जहां सरकारों और प्रशासन की पहुंच नहीं होती थी वहां भी लोगों की सेवा की जाती है और उन्हे अपने धर्म से जुड़े रहने के लिए जागरूक किया जाता है। इन सब सेवाकार्यों से परेशान और हताश होकर ईसाई मिशनरियों ने कांग्रेस सरकार पर दबाव बनाया और उन्ही के गुरूकुल में पढ़ने वाली छात्रा के माध्यम से उन पर चारित्रिक दोष लगाए।
आशाराम बापू के जेल जाने के बाद
अगर हम इन सात सालों का विश्लेषण करें तो हमें कुछ चीजे ऐसी दिखाई देंगी, जो हमने कल्पना भी ना की होगी। इस दौरान वो चीजे बड़े ही तेजी के साथ आगे बढ़ी है, जो आशाराम बापू के बाहर रहने के दौरान नहीं बढ़ पा रही थी । जिसमें मुख्यरूप से छत्तीसगढ़ में ईसाई धर्मांतरण, इन 7 सालों में छत्तीसगढ़ में बेतहाशा ईसाई धर्मातंरण हुआ, जिस पर किसी संगठन और सरकारी प्रशासन की नजर नहीं है। इन घटनाओं का विरोध अगर कोई बडे़ स्तर पर करता था, तो वो थे आशाराम बापू। इसके अलावा हम देखते है कि अब बड़े पैमाने पर न्यू ईयर का कार्यक्रम होता है, जिसमें युवाओं के भावनाओं और उनके जोश के साथ खिलवाड़ किया जाता है, उन्हे नशे का आदी बनाया जाता है, और वेलेंटाइन डे पर बड़े पैमाने पर अवैध और आपत्तिजनक चीजों का मार्केट किया जाता है। लाखों-करोड़ों का व्यापार करती है, मल्टीनेशनल कंपनिया और अगर कोई उनके इस मुनाफे में कोई बाधा बनता था तो वे थे आशाराम बापू, वो जब से जेल में हैं, तब से मानो इन कपंनियों की बहार आयी हुई है, ये अच्छे से अपना व्यापार कर रही है और भारतीय युवाओं को कमजोर बना रही है।
अब आप ही बताइए कि जो आदमी ईसाई मिशनरियों और मल्टीनेशनल कंपनियों का इतना नुकसान करता था, क्या उसे रोकना जरूरी नहीं था, इसलिए तो उसके चरित्र पर दोष लगाया गया, ताकि लोग उसकी बात मानने से इंकार करें और कंपनियों का सामान खरीदे, जिससें उनका व्यापार बढ़े।
षडयंत्र सफल नही हुआ आज भी बाप की जादु बरकरार है आज उनके मानने की संख्या करोडों देश विदेश मे आज कई घरों मे उनकी तस्वीर पुजा होती है उनके बताये रास्ते पर चल कर अपने आपको धन्य मानते है ।
आने वाला 31 अगस्त को काला दिवस के रुप मे देखते है ।

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